सेमिनरी छात्रों से पोप लियो : पुरोहिताई जीवन के प्रति उत्साही बनें

सेमिनरी छात्रों की जयन्ती के अवसर पर मंगलवार 24 जून को संत पापा लियो 14वें ने करीब 4,000 हजार सेमिनरी छात्रों एवं प्रशिक्षकों का संत पेत्रुस महागिरजाघर में स्वागत किया तथा उन्हें येसु के पवित्र हृदय और पुरोहिताई जीवन पर चिंतन का अवसर दिया।
पोप लियो ने मंगलवार की सुबह कहा कि जुबली के लिए रोम आए सेमिनारी छात्र न केवल तीर्थयात्री हैं, बल्कि आशा के गवाह हैं, जो "कलीसिया के जीवन में आशा की लौ को ईंधन देते हैं।"
संत पेत्रुस महागिरजाघर में दिए गए एक चिंतन में, पोप लियो ने सेमिनारी छात्रों से कहा कि उन्हें "मसीह की कृतज्ञता और उदारता, उल्लास और खुशी, उनके हृदय की कोमलता और दया का साक्ष्य देने, स्वागत और निकटता की शैली का अभ्यास करने, उदार और निस्वार्थ सेवा करने, एवं पुरोहित अभिषेक से पहले ही पवित्र आत्मा से 'अभिषेक' प्राप्त करने के लिए बुलाया गया है।"
येसु की तरह प्रेम करना सीखना
संत पिता ने “हृदय पर केन्द्रित” प्रशिक्षण के महत्व, “येसु की तरह प्रेम करना” सीखने के महत्व पर भी जोर दिया ।
इस प्रशिक्षण को आंतरिक जीवन के विकास के माध्यम से किया जाना चाहिए, जिसमें आत्मपरख पहला कार्य है, और हृदय की ओर लौटना शामिल है, जहाँ हमें “ईश्वर के निशान” मिलते हैं और जहाँ ईश्वर हमसे बात करते हैं।
पोप लियो ने कहा कि आंतरिक जीवन के निर्माण में हृदय की सबसे गहरी भावनाओं को पहचानना शामिल है, “जो आपको अपने जीवन की दिशा खोजने में मदद करती हैं।” उन्होंने कहा कि आंतरिकता की ओर ले जानेवाला “विशेषाधिकार प्राप्त मार्ग” प्रार्थना है, क्योंकि ईश्वर से मुलाकात के बिना, “हम वास्तव में खुद को नहीं जान सकते हैं।”
उन्होंने उन्हें बार-बार पवित्र आत्मा का आह्वान करने के लिए आमंत्रित किया, "ताकि वह उनके भीतर एक विनम्र हृदय का निर्माण कर सके, जो प्रकृति, कला, साहित्य, संगीत और विज्ञान में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने में सक्षम हो।"
पोप लियो ने कहा, "सबसे बढ़कर, येसु की तरह, छोटे बच्चों, गरीबों और उत्पीड़ितों एवं बहुत से लोगों, विशेषकर युवाओं की अक्सर खामोश पुकार को सुनना सीखें, जो अपने जीवन में अर्थ खोज रहे हैं।"
संत पापा ने सेमिनारी छात्रों से कहा कि वे अपने जीवन की घटनाओं को संरक्षित करना और उन पर ध्यान लगाना सीखें, जैसा कि कुँवारी मरियम ने किया था, ताकि वे "आत्मपरख की कला" सीख सकें।
'पुरोहिती जीवन के प्रति जुनूनी बनें
अंत में, पोप लियो ने सेमिनारी छात्रों को येसु की तरह नम्र और विनीत हृदय बनने के लिए आमंत्रित किया; और संत पौलुस की तरह, मानवीय परिपक्वता में बढ़ने के लिए मसीह की भावनाओं को अपनाने और सभी दिखावे एवं पाखंड को अस्वीकार करने के लिए कहा।
पोप ने कहा कि सेमिनारी छात्रों का कार्य "कभी भी कम से संतुष्ट नहीं होना, कभी भी संतुष्ट नहीं होना, निष्क्रिय प्राप्तकर्ता नहीं होना, बल्कि पुरोहिती जीवन के प्रति उत्साही होना, वर्तमान में जीना और भविष्य को नबी के हृदय से देखना है।"
प्रेरितों के धर्मसार की प्रार्थना करने से पहले, पोप लियो ने आशा व्यक्त की कि सेमिनारी छात्र मसीह के साथ अपना रिश्ता गहरा करेंगे, तथा ईश्वर से प्रार्थना की कि वे उनके हृदय को पवित्र हृदय की तरह बना दें, जो पूरी मानव जाति के प्यार से धड़कता है।"