पोप : येसु सिर्फ बीमारी से चंगाई नहीं बल्कि नया जीवन देते हैं

पोप लियो 14वें ने येसु आशा की निशानी पर धर्मशिक्षा को जारी रखते हैं रक्तस्राव नारी और पिता की आशा पर चिंतन किया।
पोप लियो 14वें ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह, येसु आशा की निशानी पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ाते हुए चंगाई पर चिंतन किया।
प्रिय भाइयो एवं बहनों, पोप ने कहा कि आज भी हम येसु की चंगाई पर चिंतन करेंगे जो आशा की एक निशानी है। हम उनमें एक शक्ति का अनुभव कर सकते हैं जब हम व्यक्तिगत रुप में उनके संग एक संबंध में प्रवेश करते हैं।
जीवन की थकान हमारे लिए एक विस्तृत बीमारी लगती है, जहाँ सच्चाई अपने में जटिल, ऊबाउ जान पड़ती है जिसका सामना करने में हम कठिनाई का अनुभव करते हैं। और इस भांति हम अपने में बंद हो जाते, सो जाते हैं इस भम्र में कि जब हम जागेंगे तो चीजें अपने में भिन्न होंगी। लेकिन हमें सच्चाई का सामना करने की जरुरत है और येसु के संग हम ऐसा उचित रुप में कर सकते हैं। कभी-कभी हम दूसरे की टीका-टिप्पनी के कारण अपने में अटक जाते हैं जो दूसरों पर ठप्पा लगाते हैं।
दो कहानियाँ
पोप लियो ने कहा कि इन सारी परिस्थितियों का उत्तर हम संत मारकुस के सुसमाचार के उस पद में पाते हैं जहाँ दो कहानियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं- एक बारह साल की लड़की, जो बीमारी के कारण मृत्युशाया में पड़ी है और एक नारी जो अपने में बारह सालों से रक्तस्राव से पीड़ित है, जो चंगाई प्राप्त करने हेतु येसु की खोज करती है।
इन दो नारी प्रतिरूपों के मध्य सुसमाचार लेखक लड़की के पिता के व्यक्तित्व को रखते हैं। वह घर में रुक कर अपने बेटी की बीमारी पर शिकायत नहीं करता है बल्कि बाहर जाता और सहायता की मांग करता है। हालांकि वह ईशमंदिर का प्रधान नहीं है, वह अपने सामाजिक ओहदे के कारण चीजों की मांग नहीं करता है। जब उसे प्रतीक्षा करने की मांग की जाती तो वह अपने में धैर्य नहीं खोता है, और वह इंतजार करता है। जब लोग उसे यह खबर देने आते कि उसकी बेटी मर चुकी है और स्वामी को तंग करने से कोई लाभ नहीं, तो भी वह विश्वास और आशा में बना रहता है।
नारी का विश्वास
पोप ने कहा कि उस पिता का येसु के संग वार्ता को रक्तस्राव से पीड़ित नारी बाधित करती है, जो किसी तरह येसु के निकट आती और उनके लबादे का स्पर्श करती है। वह नारी, बड़े साहस से, एक निर्णय लेती जो उसके जीवन को बदल देता है- हर कोई उसे निरंतर यही कहता कि वह उनके निकट न आये, उनकी नजरों से दूर रहे। लोगों ने उसे अकेले में और गुप्त रुप से रहने की सजा दी थी। कभी-कभी हम भी दूसरों के निर्णयों के शिकार हो सकते हैं, जो हमें एक ऐसी चादर से ढ़क देते जो हमारा नहीं है। और इस तरह हम अपने में प्रताड़ित होते रहते और उससे बाहर नहीं निकल सकते हैं।
वह नारी मुक्ति के मार्ग में आगे बढ़ती है जब उसमें यह विश्वास पनपता है कि येसु उसे चंगाई प्रदान कर सकते हैं- अतः वह अपने में साहस जमा करते हुए बाहर निकलती और उनकी खोज हेतु जाती है। वह वहाँ पहुंचने की चाह करती और कम से कम येसु के वस्त्रों को छूने की चाह रखती है।
हमारे विश्वास का प्रभाव
येसु के चारों ओर एक बड़ी भीड़ है, और बहुत से लोग उनका स्पर्श कर रहे होते हैं, यद्यपि उनमें से किसी को कुछ नहीं होता है। जबकि उस नारी का येसु को स्पर्श करना उसमें चंगाई लाती है। संत पापा ने कहा कि हम अंतर कहाँ पाते हैं। संत अगुस्टीन इस पद के संदर्भ में टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “येसु के नाम में भीड़ धक्का-मुक्की करती है, विश्वास स्पर्श करता है।” इस भांति- हर समय विश्वास में येसु को घोषित किया गया कार्य, उसके संग स्थापित हमारा संबंध, हमारे लिए तुरंत उनकी कृपा लेकर आती है। कई बार हम इसके प्रति सचेत नहीं रहते हैं लेकिन गुप्त और सच्चे रूप में उनकी कृपा हममें पहुंचती और धीरे-धीरे जीवन में हमें अंदर से परिवर्तित करती है।