सरकारों और प्रशासकों की जयन्ती के अवसर पर पोप लियो का संदेश

पोप लियो 14वें ने सरकारों और प्रशासकों की जयन्ती के अवसर पर विभिन्न राष्ट्रों के सांसदों से मुलाकात की। और प्राकृतिक कानून के महत्व को याद करते हुए, उन्हें संत थॉमस मोर को सौंप दिया, जिन्होंने "सत्य को धोखा देने के बजाय अपने जीवन का बलिदान किया, और स्वतंत्रता एवं अंतःकरण को प्राथमिकता देने की तत्परता ने उन्हें शहीद बना दिया।"
सांसदों को सम्बोधित करते हुए पोप ने कहा, “मुझे सरकारों और प्रशासकों की जयंती के उपलक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय अंतर-संसदीय संघ के मिलन समारोह के अवसर पर आपका स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। मैं 68 देशों से आए प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का अभिवादन करता हूँ। विशेषकर, राष्ट्राध्यक्षों का।”
सरकारों एवं प्रशासकों की जयन्ती 20 से 22 जून तक वाटिकन में मनाया जा रहा है।
राजनीतिक गतिविधि को “उदारता का सर्वोत्तम रूप” के रूप में परिभाषित किया गया है और यदि समाज एवं सार्वजनिक कल्याण के लिए की जानेवाली सेवा पर विचार किया जए, तो यह वास्तव में उस ख्रीस्तीय प्रेम का कार्य प्रतीत होता है जो सिद्धांत मात्र नहीं, बल्कि मानव के पक्ष में हमेशा ईश्वर के कार्य का एक ठोस संकेत और गवाही होता है (फ्राँसिस, विश्व पत्र फ्रात्तेली तूत्ती, 176-192)।
सामुदायिक हित को बढ़ावा देना
अपने संदेश में पोप लियो 14वें ने वर्तमान की सांस्कृतिक पृष्टभूमि पर तीन बिन्दुओं पर विचार किया।
पोप ने कहा, पहला बिन्दु आपको सौंपे गए कार्य से संबंधित है, जिसमें किसी व्यक्तिगत हित से परे, सामुदायिक हित को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना शामिल है, विशेषकर सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े लोगों की रक्षा करना। उदाहरण के लिए, सम्पति पर कुछ ही लोगों का कब्जा और बेहिसाब फैली गरीबी के बीच अस्वीकार्य असमानता को दूर करने के लिए काम करना। (पोप लियो XIII, विश्वपत्र पत्र रेरम नोवारम, 15 मई 1891, 1)।
पोप ने कहा, “जो लोग विषम परिस्थितियों में रहते हैं, वे अपनी आवाज बुलंद करने के लिए चिल्लाते हैं, लेकिन अक्सर कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होता। यह असंतुलन स्थायी अन्याय की स्थिति पैदा करता है, जो आसानी से हिंसा और, धीरे धीरे युद्ध की त्रासदी की ओर ले जाता है। इसके बजाय, संसाधनों के उचित वितरण को बढ़ावा देकर एक अच्छी राजनीतिक कार्रवाई सामाजिक स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सद्भाव और शांति के लिए एक प्रभावी सेवा प्रदान कर सकती है।”
धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देना
दूसरा बिन्दु धार्मिक स्वतंत्रता और अंतरधार्मिक संवाद से संबंधित है। इस क्षेत्र में भी, जो आज तेजी से प्रासंगिक होता जा रहा है, राजनीतिक कार्रवाई बहुत कुछ कर सकती है, ऐसी परिस्थितियों को बढ़ावा दे सकती है जिससे धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिले और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्मानजनक और रचनात्मक मुलाकात विकसित हो सके। ईश्वर में विश्वास करना, उससे प्राप्त होनेवाले सकारात्मक मूल्यों के साथ, व्यक्तियों और समुदायों के जीवन में अच्छाई और सच्चाई का एक विशाल स्रोत है। इस संबंध में, संत अगुस्टीन ने व्यक्ति के स्वार्थी प्रेम, बंद और विनाशकारी रूप से, बिना शर्त प्रेम, जिसकी जड़ें ईश्वर में हैं और जो खुद को दान करने हेतु प्रेरित करता है - उसके निर्माण में एक मौलिक तत्व के रूप में एक ऐसे समाज का निर्माण करना जिसमें मौलिक नियम उदारता है।
संत पापा ने राजनीतिक कार्य में उन बिन्दुओं को खोजना उपयोगी बताया जो सभी को एकजुट करता है। इसमें एक आवश्यक संदर्भ प्राकृतिक कानून का है, जो मानव हाथों से नहीं लिखा गया है, लेकिन सार्वभौमिक रूप से हर युग के लिए मान्य है, जो प्रकृति में ही अपना सबसे प्रशंसनीय और ठोस रूप पाता है। प्राचीन काल में ही सिसरो ने लिखा: “प्राकृतिक नियम सही कारण है, प्रकृति के अनुरूप, सार्वभौमिक, निरंतर और शाश्वत, जो अपने आदेशों के साथ कर्तव्यों को पूरा करने का निमंत्रण देता है, अपने निषेधों के साथ बुराई से विचलित करता है [...]। इस कानून में कोई संशोधन करने या इसके किसी हिस्से को घटाने की अनुमति नहीं है, न ही इसे पूरी तरह से समाप्त करना संभव है; न ही हम सीनेट या लोगों के माध्यम से खुद को इससे मुक्त कर सकते लेकिन एक शाश्वत और अपरिवर्तनीय कानून सभी लोगों को हर समय नियंत्रित करता है।" (सिसेरो, डी रे पब्लिका, III, 22)।
प्राकृतिक नियम के प्रति सम्मान
प्राकृतिक नियम, जो संदिग्ध प्रकृति की हर मान्यता से परे और ऊपर है, सार्वभौमिक रूप से मान्य है, वह दिशा-निर्देश है जिसके द्वारा व्यक्ति कानून बनाने और कार्य करने में स्वयं को उन्मुख कर सकता है, विशेष रूप से नाजुक नैतिक प्रश्नों पर, जो आज अतीत की तुलना में कहीं अधिक बाध्यकारी तरीके से प्रस्तुत किए जाते हैं, तथा व्यक्तिगत अंतरंगता के क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।
संत पापा ने याद किया कि 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृत और घोषित मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा अब मानवता की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। यह दस्तावेज, जो हमेशा प्रासंगिक रहता है, मानव व्यक्ति को उसकी अनुल्लंघनीय अखंडता में, सत्य की खोज की नींव पर रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, ताकि उन लोगों में सम्मान बहाल किया जा सके जो अपने अंतरतम में और अपनी अंतरात्मा की मांगों में सम्मान महसूस नहीं करते हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की एक बड़ी चुनौती
तीसरे बिन्दु पर चिंतन करते हुए पोप ने कहा, “हमारी दुनिया में सभ्यता का जो स्तर हासिल हुआ है, और जिन उद्देश्यों का जवाब देने के लिए आप बुलाये गये हैं, उसमें आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता की एक बड़ी चुनौती है। यह एक ऐसा विकास है जो निश्चित रूप से समाज के लिए वैध मदद करेगा, हालांकि, इसका प्रयोग मानव व्यक्ति की पहचान और गरिमा एवं उसकी मौलिक स्वतंत्रता को कमजोर करने में नहीं किया जाना चाहिए।