पोप लियो: बंधुत्व का अर्थ है दूसरों में ईश्वर का चेहरा देखना

मानव बंधुत्व पर तीसरी विश्व बैठक के प्रतिभागियों से मिलते हुए, पोप ने शक्ति, लाभ और संदेह की बजाय देखभाल, उदारता और विश्वास पर आधारित एक "मानव गठबंधन" बनाने का आग्रह किया।
आज 12 सितंबर की सुबह संत क्लेमेंटीन सभागार में पोप लियो 14वें ने मानव बंधुत्व पर तीसरी विश्व बैठक में दुनिया के कई हिस्सों से आये प्रतिभागियों को संबोधित किया, जो 12 से 13 सितंबर 2025 तक रोम में आयोजित होगी।
पोप ने उनका सहर्ष स्वागत करते हुए वाटिकन आने के लिए धन्यवाद दिया। पोप ने कहा कि वर्तमान विश्व संघर्षों और विभाजनों से घिरा हुआ है, इसलिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आप युद्ध के प्रति एक दृढ़ और साहसी "ना" और शांति एवं बंधुत्व के प्रति "हाँ" कहकर एकजुट हों। जैसा कि पोप फ्राँसिस ने हमें सिखाया है, युद्ध संघर्ष को सुलझाने का सही तरीका नहीं है। "संघर्ष का डटकर सामना करने, उसे सुलझाने और उसे एक नई प्रक्रिया की श्रृंखला में एक कड़ी बनाने की इच्छा" सबसे बुद्धिमानी भरा मार्ग है, शक्तिशाली का मार्ग। आपकी उपस्थिति इस ज्ञान की साक्षी है, जो संस्कृतियों और धर्मों को एक करती है और वह मौन शक्ति है जो हमें अपने सभी मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे को भाई-बहन के रूप में पहचानने में सक्षम बनाती है।”
तेरा भाई कहाँ है?
पोप ने कहा कि पवित्रशास्त्र के अनुसार, काइन और हाबिल के बीच पहला भाईचारा वाला रिश्ता तुरंत और दुखद रूप से संघर्ष में बदल गया। हालाँकि, उस पहली हत्या से हमें यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि "यह हमेशा से ऐसा ही रहा है।" चाहे वह कितनी भी प्राचीन या व्यापक क्यों न हो, काइन की हिंसा को "सामान्य" मानकर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत, यह आदर्श ईश्वर द्वारा दोषी पक्ष से पूछे गए प्रश्न में प्रकट होता है: "तेरा भाई कहाँ है?" इसी प्रश्न में हमें अपना आह्वान, न्याय का नियम और माप मिलता है। परमेश्वर काइन से हाबिल का बदला नहीं लेता, बल्कि उससे एक ऐसा प्रश्न पूछता है जिसकी गूंज पूरे इतिहास में सुनाई देती है।
भाई, बहन, तुम कहाँ हो?
पोप ने आगे कहा कि आज पहले से कहीं ज़्यादा, हमें इस प्रश्न को सुलह के सिद्धांत के रूप में अपना बनाना होगा। एक बार आत्मसात हो जाने पर, यह इस तरह प्रतिध्वनित होगा: "भाई, बहन, तुम कहाँ हो?" तुम उन युद्धों के "कारोबार" में कहाँ हो जो हथियार उठाने को मजबूर युवाओं के जीवन को तहस-नहस कर देते हैं; निहत्थे नागरिकों, बच्चों, महिलाओं और बुज़ुर्गों को निशाना बनाते हैं; शहरों, ग्रामीण इलाकों और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह कर देते हैं, और अपने पीछे केवल मलबा और दर्द छोड़ते हैं? भाई, बहन, तुम उन प्रवासियों के बीच कहाँ हो जो तिरस्कृत, कैद और अस्वीकृत हैं, उन लोगों के बीच जो मुक्ति और आशा की तलाश में हैं लेकिन उन्हें दीवारें और उदासीनता मिलती है? भाई, बहन, तुम कहाँ हो जब गरीबों को उनकी गरीबी के लिए दोषी ठहराया जाता है, भुला दिया जाता है और त्याग दिया जाता है, एक ऐसी दुनिया में जहाँ लोगों से ज़्यादा मुनाफ़े को महत्व दिया जाता है? भाई, बहन, तुम कहाँ हो उस खुद में बंद जीवन में जहाँ अकेलापन सामाजिक बंधनों को तोड़ता है और हमें खुद से भी अजनबी बना देता है?
दूसरों में ईश्वर को देखना
पोप ने कहा कि विश्वपत्र फ्रतेल्ली तुत्ती के मूल में हम पढ़ते हैं: "सामाजिक मैत्री और सार्वभौमिक बंधुत्व अनिवार्य रूप से प्रत्येक मानव व्यक्ति के मूल्य को, सदैव और सर्वत्र, स्वीकार करने की माँग करता है।" (सं. 106)।
बंधुत्व निकटता का सबसे प्रामाणिक नाम है। इसका अर्थ है दूसरे के चेहरे को फिर से खोजना। जो लोग विश्वास करते हैं, वे रहस्य को पहचानते हैं: गरीबों, शरणार्थियों और यहाँ तक कि विरोधियों के चेहरे में भी ईश्वर की छवि है।
पोप ने उनसे आग्रह किया कि वे सामाजिक दान के नए रूपों, ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के बीच गठबंधन और पीढ़ियों के बीच एकजुटता के विकास के स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय तरीकों की पहचान करें। ये समुदाय-आधारित दृष्टिकोण होने चाहिए जिनमें गरीबों को भी शामिल किया जाए, सहायता प्राप्तकर्ताओं के रूप में नहीं, बल्कि विवेक और संवाद के विषय के रूप में।
देखभाल पर आधारित गठबंधन
पोप ने मौन बुवाई के इस कार्य को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। यह मानवता और बंधुत्व पर केंद्रित एक सहभागी प्रक्रिया को जन्म दे सकता है, जो अधिकारों की सूची तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ठोस कार्य और प्रेरणाएँ भी शामिल हैं जो हमें हमारे दैनिक जीवन में अलग बनाती हैं। हमें एक व्यापक "मानवता की वाचा" की आवश्यकता है, जो शक्ति पर नहीं, बल्कि देखभाल पर आधारित हो; लाभ पर नहीं, बल्कि दान पर; संदेह पर नहीं, बल्कि विश्वास पर। देखभाल, दान और विश्वास केवल खाली समय में ही अपनाए जाने वाले गुण नहीं हैं: ये एक ऐसी अर्थव्यवस्था के स्तंभ हैं जो जीवन को नष्ट नहीं करती, बल्कि जीवन में भागीदारी को गहरा और व्यापक बनाती है।