पोप लियोः येसु को अपने दुःखों में पुकारें

पोप लियो 14वें ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में येसु की अंतिम पुकार पर चिंतन करते हुए विश्वास में हमारी पुकार को येसु की ओर निर्देशित करने का आहृवान किया।

पोप लियो ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा प्रिय भाइयो और बहनों।

आज हम इस दुनिया में येसु के जीवन की पराकाष्ठा- क्रूस पर उनकी मृत्यु के बारे में विचारमंथन करेंगे। सुसमाचार इसके संबंध में एक अति मूल्यवान व्याख्या को प्रस्तुत करता है, जो विश्वास की बौधिकता पर विचारणीय योग्य है। क्रूस पर येसु चुपचाप नहीं मरते हैं। वे एक दीपक की भांति धीरे-धीरे नहीं बुझते हैं, बल्कि वे पुकारते हुए एक जीवन छोड़ जाते हैं। “येसु पुकारते और अपने प्राण त्याग देते हैं” (मार.15.37)। उनकी पुकार अपने में - दुःख, परित्याग, विश्वास और समर्पण को वहन करती है। यह विश्वास करने वाले शरीर का खत्म होना मात्र नहीं बल्कि एक जीवन के समर्पण की निशानी है।

येसु की पुकार   
पोप लियो ने कहा कि येसु की पुकार के पहले हम एक सावल को पाते हैं, जो हृदय के एक अति मार्मिक भाव को व्यक्त करता है- “हे मेरे ईश्वर, हे मेरे ईश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया हैॽ” यह स्त्रोत 22 का पहला पद है लेकिन येसु के होंठो में इसका एक अगल ही महत्व है। पुत्र जो सदैव अपने पिता के संग घनिष्टता में जुड़ा रहा, अब उन्हें चुपचाप, अनुपस्थित, अपने से दूर रहने का अनुभव करता है। यह आस्था का संकट नहीं है, लेकिन प्रेम का अंतिम पड़ाव है जहाँ वे अपने को पूरी तरह से समर्पित करते हैं। येसु की पुकार निराश की पुकार नहीं बल्कि निष्ठा, सच्चाई और पूर्ण विश्वास का प्रतीक है जो चुपचाप रहने की स्थिति में भी बना रहती है।

ईश्वर का चेहरा
पोप लियो ने कहा, उस समय आकाश अंधकारमय हो जाता और मंदिर का पर्द फट जाता है। यह अपने में इस भांति होता है मानों सृष्टि स्वयं अपने को उस दर्द में सम्मिलित कर रही हो और साथ ही वह अपने में कुछ नयी चीज को व्यक्त कर रही हो। ईश्वर अपने को एक पर्द के पीछे नहीं रखते हैं- हम उनके चेहरे को पूर्णरूपेण क्रूस में दृश्यमान पाते हैं। हम वहाँ, उस व्यक्ति के टूटेपन में  ईश्वर को पहचान सकते हैं जो हमसे दूर नहीं रहते लेकिन हमारे दुःखों में अपने को पूरी तरह से अंतिम समय तक शामिल करते हैं।

विश्वास की प्रथम अभिव्यक्ति
शतपति, जो एक गैर-ख्रीस्तीय है इसे समझता है। इसलिए नहीं कि उसने एक उपदेश सुना है अपितु इसलिए क्योंकि वह येसु को इस भांति मरते हुए देखा-“सचमुच में वह व्यक्ति ईश्वर का पुत्र था।” यह येसु की मृत्यु के उपरांत विश्वास की पहली अभिव्यक्ति है। यह येसु की पुकार का प्रतिफल है जो हवा में विलीन नहीं हुई, बल्कि एक हृदय का स्पर्श किया। जब एक हृदय भर जाता है तो वह अपने में रोता है। और यह सदैव एक कमजोरी की निशानी नहीं है, यह मानवता की एक गहरी निशानी है।