पोप लियो 14वें ने शांति के लिए पोप पीयुस 12वें की ऐतिहासिक अपील दोहरायी

1939 में, जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी थी, तब पोप पियुस 12वें ने रेडियो पर अपनी प्रसिद्ध अपील जारी की। पोप के शब्द को, जो उस समय अनसुने रह गए थे, लियो 14वें ने आमदर्शन समारोह के अंत में तनाव और हिंसा के मौजूदा माहौल में शांति का आह्वान करते हुए दोहराए।
बुधवार को अपने आमदर्शन समारोह के अंत में पोप लियो 14वें ने शांति के लिए अपनी हार्दिक अपील जारी की, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने से कुछ ही दिन पहले पोप पीयुस 12वें द्वारा कहे गए जोरदार शब्दों को याद किया गया।
पोप लियो ने 24 अगस्त 1939 को पोप पीयुस 12वें द्वारा ऐतिहासिक रेडियो संदेश में कहे गये शब्दों का हवाला दिया, जिसके साथ उनके पूर्वाधिकारी ने वैश्विक संघर्ष को टालने की कोशिश की थी:
“शांति से कुछ भी नहीं खोता। युद्ध से सब कुछ खो सकता है।”
तूफान से पहले तर्क की आवाज
पोप पियुस 12वें को युद्ध शुरू होने के कुछ ही महीने पहले पोप पीयुस 11वें की मृत्यु के बाद चुना गया था, जिन्होंने नौ साल तक वाटिकन राज्य सचिव के रूप में भी कार्य किया था। उनके संदेश को उसी दिन शाम 7 बजे कास्तेल गंदोल्फो से प्रसारित किया गया, जिस दिन नाजी-सोवियत संधि पर हस्ताक्षर की खबर वाटिकन पहुंची थी, एक ऐसी घटना जिसने युद्ध को अपरिहार्य बना दिया।
पोप पीयुस 12 वें ने घोषणा की, "तर्क के बल पर न्याय अपना रास्ता बनाता है न कि हथियारों के बल पर।" "जो साम्राज्य न्याय पर स्थापित नहीं होता उसपर ईश्वर की आशीष नहीं होती। नैतिकता से अलग राजनीति उन लोगों को धोखा देती है जो इसे बढ़ावा देते हैं।"
उन्होंने तत्परता से कहा, “खतरा सिर पर है, लेकिन अभी भी समय है। शांति से कुछ भी नहीं खोता। युद्ध से सब कुछ खो सकता है। लोगों को आपसी समझ की ओर लौटना चाहिए। उन्हें बातचीत फिर से शुरू करनी चाहिए। सद्भावना और एक-दूसरे के अधिकारों के प्रति सम्मान के साथ बातचीत करके, वे पाएंगे कि ईमानदार और प्रभावी समझौते हमेशा संभव हैं - और सम्मानजनक सफलता की ओर ले जा सकते हैं।”
यह भाषण राज्य सचिवालय के तत्कालीन स्थानापन्न जोवन्नी बतिस्ता मोंतिनी द्वारा तैयार किए गए मसौदे पर आधारित था, जो बाद में पोप पॉल छठवें बने। संदेश देने से पहले पीयुस 12वें ने व्यक्तिगत रूप से आत्मसात किया। जब पोप ने संदेश पढ़ा तो मोंतिनी उनके बगल में मौजूद थे।
चेतावनी अनसुनी
पोप की भावुक अपील के बावजूद, उनकी आवाज अनसुनी रह गई। 1 सितंबर 1939 को जर्मन सैनिकों ने पोलैंड पर आक्रमण किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया।
आज इन शब्दों को याद करके, पोप लियो 14वें ने अतीत से वर्तमान पर प्रकाश डालने की कोशिश की, दुनिया को एक बार फिर विनाश के बजाय संवाद और युद्ध के बजाय शांति चुनने के लिए आमंत्रित किया।
बढ़ते तनाव और हिंसा से प्रभावित समय में, पोप द्वारा अपने पूर्वाधिकारी की अपील की याद दिलाना नए सिरे से तत्परता के साथ प्रतिध्वनित होता है: शांति का मार्ग खुला है, लेकिन इसके लिए साहस, विवेक और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।