“पूर्व के लूर्द” में हजारों ने कुँवारी मरियम का जन्म दिवस मनाया

कुँवारी मरियम के जन्म दिवस पर लाखों श्रद्धालु लमिलनाडु पहुँचे, और दक्षिण भारत के प्रमुख गिरजाघरों और तीर्थस्थलों में 11 दिनों तक चलनेवाले इस वार्षिक उत्सव के दौरान ईश्वर की माता का सम्मान किया।
8 सितंबर को, तमिलनाडु के नागापट्टनम जिले में स्थित 'बसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ गुड हेल्थ' (स्थानीय रूप में 'बेसिलिका ऑफ अन्नाई वेलंकन्नी') में लाखों भक्तों ने माता मरियम के जन्म पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया।
वेलंकन्नी की माता मरियम के प्रति भक्ति सभी वर्ग के लोगों में एकता की भावना पैदा करती है। ये सभी लोग कृपा और विनम्रता की मिसाल, मरियम के जीवन के लिए ईश्वर की महिमा करने के लिए यहाँ इकट्ठा हुए थे।
कुँवारी मरियम के सम्मान में उत्सव
यह उत्सव 29 अगस्त को एक उद्घाटन समारोह के साथ शुरू हुआ। इस अवसर पर, तंजावुर के धर्माध्यक्ष, सगायाराज थम्बुराज ने 'प्रणाम मरिया झंडा' फहराया, जबकि भक्तों ने प्रार्थना की।
ग्यारह दिनों तक चले इस उत्सव में, जिसमें वेलंकन्नी की माता मरियम के पास नोविना प्रार्थना शामिल थी, दिनभर, सुबह से शाम तक 14 बार तमिल, अंग्रेजी, मराठी, कोंकणी, मलयालम, तेलुगु और हिंदी में प्रार्थना और पवित्र मिस्सा किए गए।
7 सितंबर को, पोंडिचेरी-कड्डालोर के महाधर्माध्यक्ष फ्राँसिस कालिस्ट ने पवित्र मिस्सा की अध्यक्षता की। इसके बाद, रात में सजे-धजेकर रथ पर सवार कुँवारी मरियम की शोभायात्रा बासिलिका परिसर में निकाली गई। रात बारह बजे माता मरियम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में केक काटने का एक आनंदमय समारोह हुआ।
8 सितम्बर को एक विशेष ख्रीस्तयाग के साथ समारोह जारी रहा, जिसका अनुष्ठान सबेरे मद्रास- मैलापुर के महाधर्माध्यक्ष एवं तमिलनाडु काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष जोर्ज अंतोनीसामी ने की और उसके बाद समारोह दिनभर रोजरी माला विन्ती एवं विश्वासियों की प्रार्थना के साथ जारी रहा।
पूरे राज्य एवं देश में पर्व
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के बेसांत नगर में अन्नई वेलंकन्नी तीर्थस्थल पर, जो स्वास्थ्य की रानी माता मरियम को समर्पित है, हजारों श्रद्धालु पैदल चलकर आए और पर्व के दिन पवित्र मिस्सा में शामिल हुए ताकि माता मरियम से प्रार्थना कर सकें।
इस साल, मद्रास-मैलापुर के महाधर्माध्यक्ष जोर्ज अंतोनिसामी की अध्यक्षता में झंडा फहराने के समारोह में तीर्थस्थल पर 11 दिवसीय पर्व के पहले दिन 10 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए।
यह पर्व भारत के कई शहरों में धूमधाम से मनाया गया, जिनमें बैंगलोर, मुंबई और पुणे शामिल हैं। हर शहर की अपनी परंपराएं हैं और उन्होंने कलीसिया के इस उत्सव में अपनी संस्कृति को शामिल करके जन्मदिन पर माता मरियम को सम्मानित किया।
वेलांकन्नी : पूर्व की लूर्द
“अन्नाई वेलांगकन्नी” नाम तमिल भाषा से लिया गया है, जिसमें “अन्नाई” का मतलब माँ और “वेलांगकन्नी” तमिलनाडु के तटीय क्षेत्र (दक्षिण भारत) के एक गांव का नाम है। माना जाता है कि 16वीं सदी में इसी गांव में कुँवारी मरियम प्रकट हुई थीं।
तमिलनाडु में अन्नाई वेलांगकन्नी का महागिरजाघर गोथिक शैली में बना है। 16वीं सदी में स्थापित यह महागिरजाघर माता मरियम के दो बार दिव्यदर्शन और 17वीं सदी में बंगाल की खाड़ी में तूफ़ान से पुर्तगाली नाविकों को बचाने के चमत्कार से जुड़ा है।
3 नवंबर 1962 को पोप जॉन 23वें ने इस गिरजाघर को “बसिलिका” का दर्जा दिया और इसे “पूर्व का लूर्द” कहा। बसिलिका का दर्जा देने के कारणों में माता मरियम का दिव्यदर्शन, माता मरियम की चमत्कारी प्रतिमा, अनगिनत चमत्कार और बसिलिका की भव्य संरचना शामिल हैं।
हर प्रकार की आस्था के लोगों में एकता
दिव्यदर्शन के सदियों बाद भी, 11 दिवसीय यह उत्सव हर साल धूमधाम से मनाया जाता है।
इस साल इन 11 दिनों में अन्नाई वेलनकन्नी बसिलिका में करीब 30 लाख श्रद्धालु आए। यह भारत की सबसे अधिक देखी जानेवाले तीर्थस्थलों में से एक है, जहाँ भारत भर से हिंदू, मुस्लिम और ईसाई बड़ी संख्या में आते हैं और शांति से पूजा-अर्चना करते हैं। हर साल सैकड़ों लोगों के चमत्कारिक रूप से ठीक होने की खबरें आती हैं।
हिंदुओं और ईसाइयों की माता मरियम के प्रति गहरी भक्ति ने एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा को जन्म दिया है, जिसमें दोनों धर्मों के तत्व शामिल हैं।
माता मरियम से कृपा पाने के लिए भक्तों द्वारा की जानेवाली कुछ प्रथाओं में, चढ़ावा चढ़ाने के लिए सिर मुंडन कराना, कान छिदवाना, समुद्र में स्नान करना, घुटनों के बल चलना या महागिरजाघर में लेटकर प्रार्थना करना शामिल है।