दमिश्क के गिरजाघर में बम विस्फोट का कोई औचित्य नहीं

सीरिया के दमिश्क में संत एलियस गिरजागर में बमबारी के बाद, पवित्र भूमि में काथलिक धर्माध्यक्षों की सभा ने एक बयान जारी कर हिंसा की निंदा की और ख्रीस्तीयों की सुरक्षा का आह्वान किया।
दमिश्क में संत एलियस गिरजाघर पर आत्मघाती बम विस्फोट के बाद - जिसमें 25 लोग मारे गए और 63 अन्य घायल हो गए - पवित्र भूमि के काथलिक धर्माध्यक्षों की सभा ने एक बयान जारी कर अपनी "गहरी स्तब्धता और गहरी घृणा" व्यक्त की।
एक अवर्णनीय बुराई का कार्य
पवित्र भूमि में काथलिक धर्माध्यक्षों की सभा (एसीओएचएल) येरूशलेम, फिलिस्तीन, इस्राएल, जॉर्डन और साइप्रस में पवित्र भूमि के क्षेत्र पर अधिकार रखनेवाले काथलिक कलीसिया के धर्माध्यक्षों को एक साथ लाती है।
धर्माध्यक्षों के बयान में आगे कहा, "निर्दोष लोगों की हत्या का कोई औचित्य नहीं है – न धार्मिक, न नैतिक या तर्कसंगत – खासकर, पवित्र स्थान पर।" सभा ने तर्क दिया कि इस हिंसा को उचित ठहराने के लिए आस्था को आधार बनाना "पवित्रता का घोर उल्लंघन है।" यह "अकथनीय बुराई - मानवता के खिलाफ अपराध और ईश्वर के सामने पाप" का कार्य है।
पोप फ्राँसिस द्वारा हस्ताक्षरित मानव बंधुत्व पर दस्तावेज (अबू धाबी, 2019) का संदर्भ देते हुए, धर्माध्यक्षों की सभा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस हमले ने शांति और सुरक्षा में पूजा करने के अधिकार का उल्लंघन किया है: "पूजा स्थलों - आराधनालय, गिरजाघर और मस्जिदों - की सुरक्षा धर्मों, मानवीय मूल्यों, कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा गारंटीकृत कर्तव्य है। पूजा स्थलों पर हमला करने या हिंसक हमलों, बमबारी या विनाश द्वारा उन्हें धमकाने का हर प्रयास, धर्मों की शिक्षाओं से भिन्न है।"
वे शांति से रहें
इसके अलावा, सभा ने अंतियोख और समस्त पूर्वी के ग्रीक प्राधिधर्माध्यक्ष के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की, "बर्बर कृत्य" की निंदा की और "धर्म के नाम पर हिंसा को उचित ठहरानेवाली विचारधाराओं" को खारिज किया।
सीरिया में सभी ख्रीस्तीय समुदायों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए, जो वर्षों से उत्पीड़न के साथ रह रहे हैं, बयान में पीड़ितों के लिए प्रार्थना, घायलों के लिए उपचार और प्रभावित परिवारों के लिए सांत्वना की कामना की।
इसके अलावा, सभा ने सीरियाई अधिकारियों से देशभर के ख्रस्तीयों की सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए काम करने का आग्रह किया, ताकि "वे सुरक्षित रह सकें और अपनी मातृभूमि के जीवन में पूरी तरह से योगदान दे सकें।"
22 जून को देवदूत प्रार्थना के उपरांत कहे गये पोप लियो 14वें के शब्दों को दर्शाते हुए, बयान समाप्त हुआ, जिसमें प्रार्थना की गई कि "घृणा और कट्टरता के दलदल पूरी तरह मिटा जाए ताकि मध्य पूर्व के लोग - और विशेष रूप से प्यारा सीरिया – अंततः शांति, सम्मान और साझा मानवता में रह सकें।"