पोप लियोः हम ज्योति बन तैयार हों
पोप लियो 14वें ने 7 दिसम्बर 2025 को विश्व भर से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों के संग देवदूत प्रार्थना के पूर्व दिये गये संदेश में ख्रीस्तीय की छोटी बनते हुए तैयारी करने का आहृवान किया।
पोप ने संत पेत्रुस महागिरजाघर में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, शुभ रविवार।
आगमन के इस दूसरे रविवार का सुसमाचार हमारे लिए ईश्वरीय राज्य आने की बात कहता है। (मत्ती.3.1-12)। येसु की प्रेरिताई शुरू करने के पहले, आगमवक्ता योहन बपतिस्ता, परिदृश्य में आते हैं। वे यूदा की मरूभूमि में उपदेश देते हुए कहते थे, “पश्चताप करो, ईश्वर का राज्य निकट आ गया है।” (मत्ती.3.11)।
ईश्वर का राज्य
पोप ने कहा कि हे पिता हमारे की प्रार्थना में,हम प्रतिदिन प्रार्थना करते हुए कहते हैं, “तेरा राज्य आवे”, जैसे कि स्वयं येसु ने हमें सिखलाया है। इस प्रार्थना के साथ हम उस नयी चीज की ओर अभिमुख होते हैं जिसे ईश्वर ने हमारे लिए संजोकर रखा है, इस बात का अनुभव करते हुए कि इतिहास केवल दुनिया के शक्तिशाली लोगों द्वारा पहले से नहीं लिखा गया है। “आइए तब, हम अपने सोच-विचार और अपनी शक्ति को ईश्वर की सेवा में अर्पित करें जो राज्य करने नहीं अपितु हमें मुक्ति देने आये।” यही हमारे लिए सुसमाचार है, सच्चा सुसमाचार जो हमें प्रेरित करता और हमें अपनी ओर आकर्षित करता है।
ईश्वर रुप-रंग नहीं देखते
निश्चित रुप में, योहन बपतिस्ता के उपदेश में हम कठोर शब्दों को पाते हैं। यद्यपि, लोग उनकी बातों को सुनते हैं क्योंकि वे उनके शब्दों में जीवन से संबंध ईश्वर की गंभीर योजना, वर्तमान समय का सदुपयोग करने के आहृवान को पाते हैं जिससे वे अपने को न्यायकर्ता से मिलन हेतु तैयार करें, जो रुप-रंगों के आधार पर नहीं, बल्कि कार्यों और हृदय के मनोभावों के अनुरूप ऐसा करते हैं।
जीवन की उत्पत्ति आत्मा में
पोप लियो ने कहा कि वही योहन ईश्वरीय राज्य के प्रकटीकरण पर जो येसु ख्रीस्त की करूणा और दया में होता है, अपने को अचंभित पाते हैं। नबी येसु के जीवन की तुलना एक अंकुरन से करते हैं- एक निशानी जो शक्ति या विश्वास को व्यक्त नहीं करती बल्कि एक नये जन्म और नवीनता को निरूपित करती है। एक मृत ठूंठ से जीवन का उत्पन्न होना हमारे लिए पवित्र आत्मा के कार्य को व्यक्त करता है जो कोमलता में उपहारों को हममें फूंकते हैं। (इसा. 11. 1-10)। हममें से हर कोई वैसे ही उसे एक समारूप आश्चर्य के बारे में विचार कर सकता है जो हमारे जीवन में हुआ है।
द्वितीय वाटिकन महासभा में कलीसिया ने भी वैसे से अनुभव किया जिसका समापन ठीक साठ सालों पूर्व हुआ। यह हमारे लिए एक अनुभव है जिसका नवनीकरण होता है जब हम में से हर कोई ईश्वरीय राज्य की ओर यात्रा करते हुए एक साथ उसकी सेवा में अपने को समर्पित करते और उसकी चाह रखते हैं। ईश्वरीय राज्य के फलहित होने पर न केवल वे ही अपने में पुष्पित होते हैं जो कमजोर या परित्याक्त दिखाई देते हैं बल्कि वे चीजें भी जो अपने में पूर्णतः को प्राप्त करती हैं जो मानवीय रुप में असंभव प्रतीत होती हैं। नबी के द्वारा प्रस्तुत की गयी निशानियों में हम देखते हैं- “भेड़िया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछड़ा तथा सिंह-शावक साथ-साछ चरेंगे और बालक उन्हें हाँक कर ले चलेगा।” (इसा. 11.6)।
दुनिया को आशा की जरुरत
प्रिय भाइयो एवं बहनों, संत पापा लियो ने कहा कि दुनिया को आज इस आशा की कितनी जरुरत है। ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। हम उनके राज्य के लिए अपने को तैयार करें, आइए हम उसका स्वागत करें। नाजरेत का छोटा बालक येसु हमें इसकी ओर नेतृत्व करेगा। वह जो अपने को हमारी हाथों में देते हैं, अपने जन्म के रात्रि पहर से लेकर क्रूस में अपनी मृत्यु के अंधेरे क्षणों तक, हमारे इतिहास में उगते सूर्य की तरह चमकते हैं। एक नई सुबह की शुरूआत हुई है, हम उठें और ज्योति में चलें।
आगमन की आध्यात्मिकता
यह आगमन काल की आध्यात्मिकता है, जो अपने में चमकदार और ठोस है। गलियों की बत्ती हमें इस बात की याद दिलाती है कि हममें से हर कोई एक छोटी ज्य़ोति हो सकते हैं, यदि हम येसु का स्वागत करते हैं, जो एक नई दुनिया की टहनी हैं। आइए हम इसे मरियम से सीखें कि यह कैसे किया जाता है, जो हमारी माता हैं, वह आशा की एक नारी हैं जो सदैव निष्ठा में प्रतीक्षा करती हैं।